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Pain of beggers

satyamev jayate
satyamev jayate
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हम हर प्रकार के विषयों पर सोचते तो हैं परन्तु हमारी समस्या यह है कि हम समस्या की तह तक जाकर उसके निराकरण के बारे में नहीं सोचते हैं . सरकार या जनमानस को कोसकर क्या हम किसी समस्या का समाधान कर सकते हैं?
वास्तविकता यह है कि हमें उपाय सुझाने होंगे. यक़ीनन सत्य यह है कि भिक्षावृत्ति से निपटने का तरीका यह है कि भिछुकों को हरसंभव रोजगार करने के लिए प्रेरित किया जाये . व्यक्तिगत एवं सरकारी स्तर पर उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास होने चाहिए .
कई बार हम पाते हैं कि भिखारियों से यदि काम करने को कहा जाये तो वे हँस कर टाल जाते हैं या किसी और कि तरफ मुड़ जाते हैं .इसका कारण क्या हो सकता है ? क्या वे आत्मसम्मान कि कीमत पर अकर्मण्य हो गए हैं ? क्या वे काम नहीं करना चाहते हैं या उन्होंने परिस्थितियों के साथ समझौता कर लिया है ? उन्हें हाथ फैलाना काम करने से आसान लगता है ?
यदि नहीं तब तो समस्या का निदान फिर भी आसान है उन्हें सरकारी तंत्र किसी प्रकार जागृत हो कर काम दे सकता है . परन्तु समस्या तो तब भयावह है जब इन अनेक प्रश्नों के उत्तर हाँ हैं . तब तो उन्हें आत्मसम्मान कि कीमत समझानी पड़ेगी. ये कौन कर सकता है ? जहाँ तक मैं समझती हूँ अधिकांश व्यक्ति प्रयास करते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते हैं . फिर तो इनका पता लगाकर इनके पास जाकर रोजगार देना होगा . एक महिला को तो शायद अधिकांश परिवार रोजगार दे सकते हैं. पुरुष अन्य मजदूरों की तरह कम से कम मजदूरी कर सकते हैं . रही बात वृद्धों और अपाहिजों की तो उनके लिए सरकार वृद्धाश्रम के द्वार खोल सकती है. अपाहिजों के लिए अवश्य किसी प्रकार का प्रबंध सरकार को करना होगा. बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा के लाभ के साथ आवास की सुविधा भी उपलब्ध करानी होगी. जो अनाज सड़कों पर सड़ रहा है, जिसे रखने की समुचित व्यवस्था नहीं है उसे इन भिखारियों में बंटवाना होगा.
हम भिखारियों के साथ उन कर्मठ गरीबों की अवहेलना नहीं करना चाहते जो मजदूर हैं, रिक्शा चलाते हैं , जो लोगों के घरों में बर्तन धोकर अपनी जीविका चलाती हैं .और रात के अंधेरों में फुटपाथ पर सो जाते हैं . इस कर्मठता को मेरा प्रणाम है . मैं तो यही चाहूंगी की हमारे देश से भिक्षावृत्ति समूल नष्ट हो जाये.
आइये हम संकल्प करें की इस दिशा में आवश्यक कदम जरुर उठाएंगे .
चल पड़े जिधर दो डग-मग चल पड़े कोटि पग उसी ओर.

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